बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949

परिचय:

बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949, जिसे पहले बैंकिंग कंपनी अधिनियम, 1949 के नाम से जाना जाता था, भारत में बैंकिंग प्रणाली को नियंत्रित करने वाला एक महत्वपूर्ण कानून है। यह 16 मार्च 1949 को पारित हुआ और 1 मार्च 1966 से इसका नाम बदलकर “बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949” कर दिया गया। यह 1956 से जम्मू और कश्मीर में भी लागू है।

अधिनियम के मुख्य प्रावधान:

1. बैंकिंग कंपनी की परिभाषा:

  • यह अधिनियम “बैंकिंग कंपनी” को परिभाषित करता है, जिसका अर्थ है कोई भी कंपनी जो:
    • जनता से जमा स्वीकार करती है
    • मांग पर या अन्यथा देय जमा राशि का भुगतान करती है
    • चेक, ड्राफ्ट या आदेश द्वारा या अन्यथा धन का हस्तांतरण करती है

2. बैंकिंग लाइसेंस:

  • कोई भी कंपनी भारत में बैंकिंग कारोबार नहीं कर सकती जब तक कि उसे भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से लाइसेंस न मिल जाए।
  • RBI लाइसेंस जारी करने से पहले कंपनी की वित्तीय स्थिति, प्रबंधन, व्यवसाय योजना और अन्य कारकों का मूल्यांकन करता है।

3. RBI की शक्तियां:

  • RBI को बैंकिंग कंपनियों पर विभिन्न शक्तियां प्राप्त हैं, जिनमें शामिल हैं:
    • लाइसेंस जारी करना और निलंबित करना
    • निरीक्षण और जांच करना
    • निर्देश जारी करना
    • दंड लगाना
    • बैंकिंग कंपनियों का विलय और अधिग्रहण को मंजूरी देना
    • तरलता आवश्यकताएं निर्धारित करना
    • ब्याज दरों पर प्रतिबंध लगाना

4. बैंकिंग कंपनियों का प्रबंधन:

  • अधिनियम बैंकिंग कंपनियों के प्रबंधन के लिए प्रावधान करता है, जिसमें शामिल हैं:
    • निदेशकों की नियुक्ति, योग्यता और कार्यकाल
    • बोर्ड की बैठकें
    • निदेशकों की शक्तियां और कर्तव्य
    • लेखा परीक्षा और लेखा-पोखा

5. जमा बीमा:

  • यह अधिनियम जमा बीमा योजना (DIS) की स्थापना करता है, जो बैंक विफलता की स्थिति में जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करता है।
  • DIS के तहत, प्रत्येक बैंकिंग कंपनी को अपने जमाकर्ताओं के जमा का एक निश्चित प्रतिशत बीमा शुल्क देना होता है।
  • यदि कोई बैंक विफल हो जाता है, तो DIS जमाकर्ताओं को उनके जमा का एक निश्चित हिस्सा वापस कर देता है।

6. अन्य प्रावधान:

  • अधिनियम में बैंकिंग कंपनियों द्वारा किए जा सकने वाले लेनदेन, निवेश और अन्य गतिविधियों के संबंध में कई अन्य प्रावधान भी शामिल हैं, जैसे:
    • नकदी आरक्षण आवश्यकताएं
    • ऋण सीमा
    • पूंजी पर्याप्तता मानदंड
    • विदेशी मुद्रा लेनदेन
    • ग्राहक संरक्षण

अधिनियम के महत्व:

  • बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 भारत में बैंकिंग प्रणाली के सुचारू संचालन और जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • यह अधिनियम बैंकों को सुरक्षित और
  • यह ग्राहकों को धोखाधड़ी और अन्य वित्तीय नुकसान से बचाता है।
Share with friends